शिक्षण से आशय :-
शिक्षण वह प्रक्रिया है जिसमें कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति या व्यक्ति के समूह को कुछ बातों का ज्ञान प्रदान करता है ।शिक्षण को दो परिपेक्ष में समझा जा सकता है व्यापक और संकुचित
शिक्षण एक व्यापक प्रक्रिया जिसमें व्यक्ति अपने आसपास के वातावरण के घटकों जैसे परिवार पड़ोसी मित्र शिक्षक आदि से जन्म से मृत्यु तक कुछ ना कुछ सीखता रहता है ।
शिक्षण के संकुचित अर्थ में शिक्षण व प्रक्रिया जिसके द्वारा शिक्षक किसी शिक्षा संस्थान में शिक्षार्थियों को पूर्व निश्चित ज्ञान प्रदान करता है।
शिक्षण के सामान्य सिद्धांत:-
1. क्रिया द्वारा सीखने का सिद्धांत
2. रुचि का सिद्धांत
3. निश्चित उद्देश्य का सिद्धांत
4. चयन करने का सिद्धांत
5. वैयकतिक विभिन्नता का सिद्धांत
पहले से योजना बनाना
विद्यार्थियों के विशेष संबंधित पूर्व ज्ञान के बारे में जानकारी प्राप्त करना
अध्यापन सामग्री को सुसंगठित करना
अध्यापन सामग्री को कक्षा में प्रस्तुत करना
विश्लेषण व संलयन करना
मूल्यांकन करना
पुनरावृत्ति
सरल से जटिल की ओर
ज्ञात से अज्ञात की ओर
पूर्ण से अंश की ओर
अनिश्चित से निश्चित की ओर
प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर
विशिष्ट से सामान्य की ओर
विश्लेषण से संश्लेषण की ओर
शिक्षार्थी या विद्यार्थी
पाठ्यक्रम
1. शिक्षक :- शिक्षक एक ऐसा स्त्रोत है जिससे विद्यार्थी अपने उद्देश्य की प्राप्ति में सफलता प्राप्त कर सकता है शिक्षक शैक्षिक प्रक्रिया का एक आधारभूत तत्व है जिसके अभाव में शिक्षा प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकती है।
2. शिक्षार्थी या विद्यार्थी :- शिक्षण प्रक्रिया विद्यार्थी के बिना संभव नहीं है शिक्षार्थी वह तत्व है जिसे शिक्षा प्राप्त करनी है।
3. पाठ्यक्रम :- शिक्षण प्रक्रिया प्रक्रिया का महत्वपूर्ण तत्व पाठ्यक्रम है पाठ्यक्रम वही साधन है जिसे शिक्षक द्वारा शिक्षार्थी को पढ़ाया जाता है ।
1. शिक्षण के तीन आधार
शैक्षणिक प्रक्रिया को 3 प्रश्नों के आधार पर तय किया जा सकता है क्यों कैसे और क्या क्यों का उत्तर सबसे महत्वपूर्ण है यह दर्शनशास्त्र द्वारा दिया जाता है कैसे का उत्तर मनोविज्ञान और क्या का उत्तर समाजशास्त्र द्वारा दिया जाता है इसलिए हम संक्षेप में यह कह सकते हैं शिक्षा का मूल आधार दर्शनशास्त्र मनोविज्ञान और समाजशास्त्र है।
2. आदर्शवाद
आदर्शवाद नैतिक मूल्यों अध्यात्म आत्म अनुशासन आत्म अनुभूति व्यक्तित्व पर बल देता है यू संक्षिप्त में कह तो सत्यम शिवम सुंदरम की व्याख्या आदर्शवाद की आत्मा है
3. प्रकृतिवाद
इसमें प्रकृति को शिक्षक माना गया है इस अवधारणा के आधार पर पुस्तके ज्ञान पर कम बल दिया जाता है प्रकृति बल पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जाता था यदि किसी बच्चे को पेड़ पर चढ़ना सीखना है तो वह है केवल पुस्तिका के ज्ञान से नहीं सीख सकता उसे पेड़ पर चढ़कर देखना ही होगा यदि वह पेड़ से गिरता है तो उसे अपनी भूल का एहसास होगा जिस वजह से वह पेड़ से गिरा दोबारा जब पेड़ पर चलेगा तो वह भूल नहीं करेगा
2. रुचि का सिद्धांत
3. निश्चित उद्देश्य का सिद्धांत
4. चयन करने का सिद्धांत
5. वैयकतिक विभिन्नता का सिद्धांत
शिक्षण प्रक्रिया के चरण:
शिक्षण एक चरणबद्ध प्रक्रिया जिसके प्रमुख चरण इस प्रकार हैं।पहले से योजना बनाना
विद्यार्थियों के विशेष संबंधित पूर्व ज्ञान के बारे में जानकारी प्राप्त करना
अध्यापन सामग्री को सुसंगठित करना
अध्यापन सामग्री को कक्षा में प्रस्तुत करना
विश्लेषण व संलयन करना
मूल्यांकन करना
पुनरावृत्ति
शिक्षण सूत्र :-
शिक्षा शास्त्रियों द्वारा शिक्षण हेतु कुछ शिक्षा सूत्रों का निर्माण किया जिसे प्रत्येक शिक्षक द्वारा अपनाना चाहिए यह शिक्षण सूत्र निम्नलिखित हैं ।सरल से जटिल की ओर
ज्ञात से अज्ञात की ओर
पूर्ण से अंश की ओर
अनिश्चित से निश्चित की ओर
प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर
विशिष्ट से सामान्य की ओर
विश्लेषण से संश्लेषण की ओर
शिक्षण प्रक्रिया के आधारभूत तत्व
शिक्षकशिक्षार्थी या विद्यार्थी
पाठ्यक्रम
1. शिक्षक :- शिक्षक एक ऐसा स्त्रोत है जिससे विद्यार्थी अपने उद्देश्य की प्राप्ति में सफलता प्राप्त कर सकता है शिक्षक शैक्षिक प्रक्रिया का एक आधारभूत तत्व है जिसके अभाव में शिक्षा प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकती है।
2. शिक्षार्थी या विद्यार्थी :- शिक्षण प्रक्रिया विद्यार्थी के बिना संभव नहीं है शिक्षार्थी वह तत्व है जिसे शिक्षा प्राप्त करनी है।
3. पाठ्यक्रम :- शिक्षण प्रक्रिया प्रक्रिया का महत्वपूर्ण तत्व पाठ्यक्रम है पाठ्यक्रम वही साधन है जिसे शिक्षक द्वारा शिक्षार्थी को पढ़ाया जाता है ।
शिक्षण की अवधारणा :-
शिक्षण की कुछ प्रमुख अवधारणाएं निम्नलिखित हैं1. शिक्षण के तीन आधार
शैक्षणिक प्रक्रिया को 3 प्रश्नों के आधार पर तय किया जा सकता है क्यों कैसे और क्या क्यों का उत्तर सबसे महत्वपूर्ण है यह दर्शनशास्त्र द्वारा दिया जाता है कैसे का उत्तर मनोविज्ञान और क्या का उत्तर समाजशास्त्र द्वारा दिया जाता है इसलिए हम संक्षेप में यह कह सकते हैं शिक्षा का मूल आधार दर्शनशास्त्र मनोविज्ञान और समाजशास्त्र है।
2. आदर्शवाद
आदर्शवाद नैतिक मूल्यों अध्यात्म आत्म अनुशासन आत्म अनुभूति व्यक्तित्व पर बल देता है यू संक्षिप्त में कह तो सत्यम शिवम सुंदरम की व्याख्या आदर्शवाद की आत्मा है
3. प्रकृतिवाद
इसमें प्रकृति को शिक्षक माना गया है इस अवधारणा के आधार पर पुस्तके ज्ञान पर कम बल दिया जाता है प्रकृति बल पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जाता था यदि किसी बच्चे को पेड़ पर चढ़ना सीखना है तो वह है केवल पुस्तिका के ज्ञान से नहीं सीख सकता उसे पेड़ पर चढ़कर देखना ही होगा यदि वह पेड़ से गिरता है तो उसे अपनी भूल का एहसास होगा जिस वजह से वह पेड़ से गिरा दोबारा जब पेड़ पर चलेगा तो वह भूल नहीं करेगा
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